(गीता-43) सिर्फ़ यह बात समझ लो, फिर कभी हारोगे नहीं! || आचार्य प्रशांत, भगवद् गीता पर (2024)

2024-06-29 0

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वीडियो जानकारी: 09.05.24, गीता समागम, ग्रेटर नॉएडा

प्रसंग:
- जो उच्चतम है, जो हृदय है, उसकी कल्पना ही नहीं करी जा सकती । और हम फस गए।
- इस समस्या के 3 तरीके निकाले गए :

1.ऊंचाई से बचने का तरीका। कह देना की वो निराकार है न ,और हम तो साकार हैं। तो उससे तो रिश्ता बन ही नहीं सकता। वो ऊंचे है, हम तो नीचे के हैं। पहले ही घोषित कर देना की हम तो ऊंचाई के है ही नहीं। न उठेंगे, न ज़िम्मेदारी उठाएंगे।

2.आसमान को ही जमीन पर उतार दूंगा। ऊपर उठ के क्या करेंगे।

श्रीमद्भगवद्गीता
अध्याय 4, श्लोक 24

ब्रह्मार्पणं ब्रह्म हविर्ब्रह्माग्ग्रौ ब्रह्मणा हुतम् ।
ब्रह्मैव तेन गन्तव्यं ब्रह्मकर्मसमाधिना ।।

अर्थ (आचार्य प्रशांत भाष्य पुस्तक):
यज्ञ में अर्पण करने वाली सामग्री ब्रह्म है, आहुति हेतु इस्तेमाल करे जाने वाले द्रव्य ब्रह्म है, अग्नि भी ब्रह्म है, और इस ब्रह्मरूप अग्नि में ब्रह्म-ही-रूप हवनकर्ता द्वारा जो होम किया जाता है वह भी ब्रह्म है। जो इस प्रकार समझते हैं, वो ब्रह्मरूप कर्म में संयतचित्त व्यक्ति ब्रह्म को ही प्राप्त होते हैं।

काव्यात्मक अर्थ
ऊंचे प्यारे लक्ष्य की
सेवा में तल्लीन है
करण ब्रह्म करम ब्रह्म
कर्ता भी ब्रह्मलीन है

संगीत: मिलिंद दाते
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